Boycott Pathaan: बॉलीवुड के किंग शाहरुख खान (Shahrukh Khan) और एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण (Deepika Padukone) की मचअवेटिड मूवी ‘पठान’ (Pathaan) का पहला गाना ‘बेशर्म रंग’ (Besharam Rang) रिलीज हो चुका है. लेकिन इसके बाद ही फिल्म का बायकॉट भी सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगा है.
Boycott Deepika-SRK film: पिछले कुछ महीनों से बॉलीवुड फिल्मों के बायकॉट का ट्रेंड चल रहा है जिसका असर फिल्मों के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन पर भी साफ नजर आ रहा है. अब सुपरस्टार शाहरुख खान (Shahrukh Khan) की फिल्म ‘पठान’ (Pathaan) को लेकर भी सोशल मीडिया पर यही हवा उड़ रही है. आपको बता दें कि शाहरुख खान की फिल्म ‘पठान’ (Pathaan) अगले साल जनवरी में रिलीज होने वाली है. हाल ही में फिल्म का पहला गाना ‘बेशर्म रंग’ (Besharam Rang) रिलीज हुआ है जिसमें दीपिका पादुकोण (Deepika Padukone) और शाहरुख खान की सिजलिंग केमिस्ट्री देखने को मिल रही है. लेकिन पहले गाने की रिलीज के बाद ही लोग दीपिका पादुकोण (Deepika Padukone) को बुरी तरह से ट्रोल कर रहे हैं.
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दीपिका के कपड़ों पर हुआ बवाल
दरअसल, पठान के गाने ‘बेशर्म रंग’ में दिपिका का हॉट और सिजलिंग लुक हर किसी का ध्यान खींच रहा है. गाने में दीपिका के स्टेप्स और आउटफिट को लेकर कुछ लोग उन्हें जमकर ट्रोल कर रहे हैं. इसके बाद सोशल मीडिया पर फिल्म के बायकॉट को हल्ला मचा हुआ है. दरअसल, गाने में दीपिका पादुकोण ने मोनोकिनी पहनी है जो भगवा रंग की है. मोनोकिनी के रंग पर अब हर तरफ बवाल मच गया है. आपको बता दें कि पठान का गाना ‘बेशर्म रंग’12 दिसंबर को रिलीज किया गया है जिसमें एक्ट्रेस का सेंशुअस लुक हर किसी को दीवाना बना रहा है. लेकिन इसी गाने में दीपिका की ऑरेंज मोनोकिनी पर हंगामा मच गया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कुछ लोगों का कहना है कि फिल्म में भगवा रंग का इस्तेमाल हिंदू धर्म का अपमान है.
मोनोकिनी का रंग बदलने की मिली चेतावनी
आपको बता दें कि एक पोस्ट के जरिए मध्यप्रदेश के होम मिनिस्टर नरोत्तम मिश्रा ने गाने से दीपिका के कपड़ों के रंग को बदलने की हिदायत दी हैं. उन्होंने कहा है कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो वो ‘पठान’ को एमपी में रिलीज नहीं होने देंगे. खैर, अब ये देखने वाली बात होगी कि पठान के मेकर्स अब ‘बेशर्म रंग’ में क्या बदलाव करते हैं. आपको बता दें कि शाहरुख खान की वजह से फिल्म ‘पठान’ को लेकर दर्शकों में काफी बज बना हुआ है. किंग खान लगभग 4 सालों बाद ‘पठान’ से धमाका करने के लिए तैयार हैं. इसके पहले शाहरुख खान कैटरीना कैफ और अनुष्का शर्मा के साथ फिल्म जीरो में दिखाई दिए थे. इसके अलावा बात करें शाहरुख की बाकी आने वाली फिल्मों की तो ‘पठान’ के बाद शाहरुख ‘जवाब’ और ‘डंकी’ जैसी बड़ी फिल्मों में भी नजर आएंगे.
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‘पंचायत आजतक’ में जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के अलावा विभिन्न सियासी दलों की प्रमुख नेता भी शिरकत करने वाले हैं. इस खास कार्यक्रम में विभिन्न राजनीतिक पृष्ठभूमि के वक्ता एक साथ आएंगे और विभिन्न विषयों पर अपने विचार प्रस्तुत करेंगे. इस दौरान कई मुद्दों पर बात होगी और सियासी समीकरणों पर चर्चा की जाएगी.
‘पंचायत आजतक’ में जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के अलावा विभिन्न सियासी दलों की प्रमुख नेता भी शिरकत करने वाले हैं. इस खास कार्यक्रम में विभिन्न राजनीतिक पृष्ठभूमि के वक्ता एक साथ आएंगे और विभिन्न विषयों पर अपने विचार प्रस्तुत करेंगे. इस दौरान कई मुद्दों पर बात होगी और सियासी समीकरणों पर चर्चा की जाएगी.
जम्मू-कश्मीर में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव से पहले आज ‘पंचायत आजतक’ का मंच सज गया है. इस सबसे बड़ी सियासी पंचायत में सबसे पहले राज्य के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने शिरकत की. मनोज सिन्हा ने 1957 के पहले चुनाव का जिक्र करते हुए कहा कि तब 75 सीटें थीं. 20 एमएलए निर्विरोध चुने गए. जम्मू कश्मीर की अवाम, खासकर घाटी के लोगों ने भी भारत के लोकतंत्र में आस्था व्यक्त की. उन्होंने कहा कि साजिश से बाहर निकलते हुए यहां की अवाम को भी ये समझ आ गया है कि हमारा भविष्य भारत के लोकतंत्र में है. उन्होंने उपराज्यपाल की पावर बढ़ाए जाने के सवाल पर कहा कि उस पर सवाल उठाना उचित नहीं है. जहां भी संघ राज्य क्षेत्र या केंद्र शासित प्रदेश हैं, वहां इस तरह की शक्तियां उपराज्यपाल के पास हैं. जो भी सरकार आएगी, उसे मेरा पूरा समर्थन होगा. मनोज सिन्हा ने कहा कि विधानसभा चुनाव भी पूरी तरह से फ्री और फेयर होगा. आज रात के 11 बजे भी लोग बाहर जाकर खाना खा रहे हैं, 12 बजे रात तक प्रचार हो रहा है. उन्होंने कहा कि ये जो बदलाव हुआ है, उसे देखने की जरूरत है.
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});मनोज सिन्हा ने कहा कि त्रिस्तरीय पंचायत लागू होने के बाद हमने फंड ट्रांसफर कर दिए थे. राजनीतिक दलों का काम है, कुछ कुछ कहते रहते हैं. जनता इसका फैसला करेगी. अनुच्छेद 370 बहाल करने के वादों पर उन्होंने कहा कि जो लोग संवैधानिक पदों पर रहे हैं या शपथ ले चुके हैं, उनको ये समझना चाहिए कि ये अब भारत के संविधान का हिस्सा नहीं है. मनोज सिन्हा ने कहा कि ऐसी बातों से बचने की सलाह दूंगा. राहुल गांधी के राजा बताने के सवाल पर उन्होंने कहा कि जनता की राय ले लें, उनके दिमाग के दरवाजे खुल जाएंगे. सीक्रेट बैलट करा लें. 75 फीसदी से अधिक जनता ने ये नहीं कहा कि पिछले पांच साल में जनता की भलाई के लिए काम हुआ है तो मैं यहां से चला जाऊंगा. उन्होंने यह भी कहा कि न्यायालयों पर जो लोग सवाल उठा रहे हैं, ये ठीक नहीं है. कीचड़ में पत्थर गिरता है तो छींटे खुद पर ही पड़ते हैं. लोगों को इस तरह की बातों से बचना चाहिए. पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती, उमर अब्दुल्ला और तमाम दिग्गज भी आजतक के इस महामंच पर मौजूद रहेंगे और जम्मू कश्मीर के सियासी हालात और चुनावी समीकरणों पर बात होगी. ‘पंचायत आजतक’ में शिरकत करने वाली हस्तियों से अलग-अलग सत्रों के दौरान राजनीतिक मुद्दों और जम्मू-कश्मीर के लोगों की आकांक्षाओं से जुड़े सवाल पूछे जाएंगे. आजतक के इस मंच पर सबसे पहले सत्र ‘नया कश्मीर, कैसी तस्वीर’ में जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल एलजी मनोज सिन्हा पहुंचे और उन्होंने तमाम सवालों के जवाब दिए.
“ये हस्तियां करेंगी शिरकत।”
The message is grammatically correct and does not have any spelling mistakes. However, if you need to add more context or details, please provide that information!इस कार्यक्रम में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा, नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष और जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला जैसी प्रमुख राजनीतिक हस्तियां शामिल होंगी. साथ ही केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती, नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, ऑल पार्टीज हुर्रियत कांफ्रेंस के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक, पीपुल्स कांफ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन, पीडीपी की नेता और अभियान प्रभारी इल्तिजा मुफ्ती, AIP के स्टार प्रचारक अबरार राशिद, जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष अल्ताफ बुखारी, जम्मू-कश्मीर में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रवींद्र रैना. जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष तारिक हामिद कर्रा अलग-अलग सेशंस में शिरकत करेंगे
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); - टेरर फंडिंग के आरोपी इंजीनियर राशिद के चुनाव प्रचार से किसे फायदा किसे होगा नुकसान? AIP पार्टी जम्मू-कश्मीर में बनेगी गेमचेंजर?by Desk
Engineer Rashid Bail: जम्मू-कश्मीर में टेरर फंडिंग के आरोपी और सांसद राशिद इंजीनियर के जेल से आते ही जम्मू-कश्मीर की राजनीति की फिजा बदल गई है. राशिद को चुनाव प्रचार के लिए जमानत मिली है, आखिर क्या वजह है कि राशिद की जमानत से महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला की परेशानी बढ़ गई है. राशिद के चुनाव प्रचार से किसको होगा फायदा, किसे होगा नुकसान. जानें सबकुछ.
Jammu Kashmir Politics: जम्मू-कश्मीर में करीब 10 साल बाद विधानसभा चुनाव होने जा रहा है. इससे पहले बारामुल्ला के सांसद राशिद इंजीनियर जेल से बाहर आ गए हैं. राशिद को जमानत मिलते ही राजनीतिक पारा गरमा गया है. तो आइए जानते हैं कि टेरर फंडिंग के आरोपी सांसद इंजीनियर राशिद के चुनाव प्रचार से किसे फायदा और किसे नुकसान होगा? NC और PDP में आखिर क्यों खलखली मच गई है. आखिर राशिद की पार्टी से बीजेपी को क्या फायदा होने वाला है.
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});जेल से रिहाई, पार्टियों में खौफ?
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राशिद इंजीनियर की रिहाई से जम्मू-कश्मीर के क्षेत्रीय दलों में खौफ आ गया है. जम्मू-कश्मीर हुए लोकसभा में जेल से ही राशिद ने अपना चुनाव जीता था. राशिद के जेल से बाहर आने के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की सबसे अधिक टेंशन बढ़ गई है. राशिद वही शख्स हैं जिसने जेल में बंद रहने के बाद भी लोकसभा चुनाव 2024 में अब्दुल्ला को बारामूला लोकसभा सीट से हरा दिया था. तभी तो उमर अब्दुल्ला कहते हुए फिर रहे हैं कि राशिद को बेल चुनाव के लिए मिली है. इंजीनियर राशिद और उनके लोग बीजेपी के इशारे पर काम कर रहे हैं. नेशनल कांफ्रेस (NC) के बाद पीडीपी सुप्रीमो महबूबा मुफ्ती (Mehbooba Mufti) ने राशिद की पार्टी पर जमकर निशाना साधा है, उनका कहना है कि राशिद की पार्टी आईपी बीजेपी की नई प्रॉक्सी दल है.राशिद के चुनाव प्रचार से किसको फायदा?
बारामूला लोकसभा सीट से उमर अब्दुल्ला को शिकस्त देकर निर्दलीय सांसद बने राशिद के बाहर आने से चुनाव पर खासा असर पड़ सकता है. सबसे अधिक नुकसान NC और PDP को उठाना पड़ सकता है, तभी तो दोनों पार्टियां राशिद की जमानत का जमकर विरोध कर रही हैं.राशिद की पार्टी को मिला वोट तो बीजेपी को होगा फायदा?
घाटी में NC और PDP का अपना वोट वैंक है, राशिद की पार्टी इन्हीं वोटरों को अपने पाले में ला सकती है, इससे जहां मामला त्रिकोणीय होगा तो बीजेपी को एक तरह से फायदा मिल सकता है. महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और राशिद की पार्टी के बीच इस चुनाव में बात नहीं बनी है, यानी अगर राशिद की पार्टी पूरे दमखम से चुनाव लड़ी तो पीडीपी को बहुत नुकसान होगा.सहानुभूति का वोट?
दरअसल, इंजीनियर राशिद लंबे समय से सलाखों के पीछे रहे हैं, यही वजह है कि जनता की सहानुभूति वे लोकसभा में भी बटोरने में कामयाब हुए थे, इस बार विधानसभा चुनाव में इसी भावना के साथ अपने साथ और वोटरों को जोड़ सकते हैं. जिससे विपक्षियों को नुकसान उठाना पड़ सकता है. विधानसभा चुनाव के लिए जारी घोषणापत्र में आवामी इत्तेहाद पार्टी (एआईपी, AIP) ने कैदियों की रिहाई और PSA और USPA को रद्द करने का वादा किया है. जिसका भी प्रभाव दिख सकता है.26 सीटों पर राशिद की पार्टी लड़ रही चुनाव
लोकसभा में चुनाव के परिणाम के बाद राशिद की पार्टी ने पूरे घाटी में पैर पसार लिए है. उत्तर से लेकर दक्षिण तक रशीद के 26 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं. तभी तो राशिद के छोटे भाई शेख ख़ुर्शीद ने लैंगेट से नामांकन भरने के बाद कहा था कि राशिद के जमानत से बाहर आने पर सैलाब आएगा. राशिद के भाई खुर्शीद अहमद शेख सरकारी टीचर थे, जिन्होंने चुनाव लड़ने के लिए नौकरी छोड़ दी.20 सीटें जीतने का अनुमान
पार्टी की ओर से कहा गया है कि विधानसभा चुनाव में घाटी की करीब 20 सीटों पर उसे जीत मिलेगी. यदि ऐसा होता है तो एआईपी जम्मू-कश्मीर की एक बड़ी राजनीतिक शक्ति बनकर उभरेगी. जबकि, जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के लिए यह बड़े झटके की तरह होगा. इसमें भी बीजेपी को फायदा होने वाला है, बीजेपी इन छोटे दलों के साथ मिलकर सरकार बना सकती है, बीजेपी की नजर इस बार निर्दलीय उम्मीदवारों पर भी है, जिनको एक साथ लेकर सत्ता में आया जा सकता है.निर्दलीय प्रत्याशी और छोटे दलों पर बीजेपी की नजर
जम्मू-कश्मीर के दो चरण की 50 विधानसभा सीटों पर कुल 485 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किए हैं, जिसमें 214 निर्दलीय प्रत्याशी किस्मत आजमा रहे हैं. पहले चरण की 24 विधानसभा सीट पर 92 और दूसरे चरण की 26 विधानसभा सीट पर 122 निर्दलीय कैंडिडेट हैं. जम्मू-कश्मीर की सियासत में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में निर्दलीय किस्मत आजमा रहे हैं. हालांकि, जमात-ए-इस्लामी से जुड़े लोगों ने अपनी क्षेत्रीय पार्टी बनाई थी, लेकिन चुनाव आयोग से मान्यता नहीं मिल सकी है. इसके चलते जमात-ए-इस्लामी जम्मू-कश्मीर के लोग निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर ताल ठोक दी है. यही वजह है कि इस बार निर्दलीय उम्मीदवारों के उतरने का सारा रिकॉर्ड टूटता नजर आ रहा है.इंजीनियर राशिद का बैकग्राउंड
2016 में जम्मू-कश्मीर में टेरर फंडिंग के आरोप में UAPA के तहत गिरफ्तार किया गया था, जिनका नाम तब सामने आया जब एनआईए कश्मीरी कारोबारी जहूर वताली से जुड़े केस की जांच कर रही थी, जिसे घाटी में आतंकवादी समूहों और अलगाववादियों के लिए फंडिंग करने के आरोप में गिरफ्तार किया था. राशिद को दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट से टेरर फंडिंग मामले में 2 अक्टूबर तक अंतरिम जमानत मिली है. इंजीनियर राशिद को इससे पहले अदालत ने सांसद के तौर पर शपथ लेने के लिए भी छोड़ा था. - IND vs SA Final Live: भारत ने फाइनल में जीता टॉस, साउथ अफ्रीका के खिलाफ बैटिंग चुनीby Desk
IND vs SA Final T20 World Cup 2024 Live Score: टी20 वर्ल्ड कप 2024 का वह दिन आ गया जिसका इंतजार करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों था. शनिवार (29 जून) को फाइनल में भारत के सामने साउथ अफ्रीका की टीम है. इस टूर्नामेंट की दो अजेय टीमों के बीच खिताबी मुकाबला है.
India vs South Africa T20 World Cup Final 2024 Live Score Updates: टी20 वर्ल्ड कप 2024 का वह दिन आ गया जिसका इंतजार करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों था. शनिवार (29 जून) को फाइनल में भारत के सामने साउथ अफ्रीका की टीम है. इस टूर्नामेंट की दो अजेय टीमों के बीच खिताबी मुकाबला है. भारत के कप्तान रोहित शर्मा ने टॉस जीतकर पहले बैटिंग का फैसला किया है. उन्होंने प्लेइंग-11 में कोई बदलाव नहीं किया. साउथ अफ्रीका भी उसी टीम के साथ मैच में उतरी है.
भारत ग्रुप राउंड, सुपर-8 और सेमीफाइनल में नहीं हारा. दूसरी ओर, अफ्रीकी टीम ने भी इस कमाल दिखाते हुए फाइनल में जगह बनाई है. भारत 2014 के बाद टी20 वर्ल्ड कप के फाइनल में पहुंचा था. तब उसे श्रीलंका ने हराया था. टीम इंडिया 2007 में चैंपियन बनी थी. साउथ अफ्रीका की बात करें तो वह पहली बार किसी भी वर्ल्ड कप (वनडे या टी20) के फाइनल में जगह बनाने में सफल हुआ है.
फाइनल तक भारत की सफर की बात करें तो उसने ग्रुप ए में आयरलैंड, पाकिस्तान और अमेरिका को हराया था. कनाडा के खिलाफ मैच बारिश के कारण रद्द हो गया था. सुपर-8 में टीम इंडिया ने अफगानिस्तान, बांग्लादेश और ऑस्ट्रेलिया को हराया था. इसके बाद सेमीफाइनल में इंग्लैंड को शिकस्त दी. साउथ अफ्रीका की बात करें तो उसने बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल और नीदरलैंड को हराया. इसके बाद सुपर-8 में उसने वेस्टइंडीज, इंग्लैंड और अमेरिका को हराया. सेमीफाइनल अफगानिस्तान को परास्त किया.
- जब पहली बार मिले थे अटल-आडवाणी… ऐसे बनी थी देश की मशहूर सियासी जोड़ीby Desk
- जब पहली बार मिले थे अटल-आडवाणी… ऐसे बनी थी देश की मशहूर सियासी जोड़ीby Desert Darshan
बात 1951-52 की है. आज़ाद भारत में पहली बार आम चुनाव हो रहे थे. अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी वक्ता के रूप में ख्याति पा चुके थे, ये कौशल उन्हें अपने शिक्षक पिता से विरासत में मिला था. हिंदी भाषा के बाजीगर अटल बिहारी वाजपेयी को चुनाव अभियान में श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ हिंदी अनुवादक के रूप में रखा गया. यही वजह थी कि चुनाव अभियान के चरम पर वाजपेयी रेलगाड़ी में सवार होकर मुखर्जी के साथ राजस्थान के कोटा शहर पहुंचे.
जब पहली बार मिले थे अटल-आडवाणी… ऐसे बनी थी देश की मशहूर सियासी जोड़ी
राज्य में चुनावों का समन्वय कर रहे प्रचारक स्टेशन पर उन्हें लेने पहुंचे. ये लम्हा 2 व्यक्तित्वों के अनोखे रिश्ते की नींव डालने वाला था. एक ऐसी जोड़ी बनने वाली थी, जिसे देश के सियासी पटल पर कई इबारतें लिखनी थीं. कोटा में पहली बार लालकृष्ण आडवाणी की मुलाकात अटल बिहारी वाजपेयी से हुई और 25 वर्षीय आडवाणी, अटल के व्यक्तित्व से बेहद प्रभावित हुए. करीब 60 साल बाद आडवाणी खुद पर वाजपेयी के असर को याद करते हुए कहते हैं एक कवि जो राजनीति की ओर बढ़ रहा था…उनके भीतर कुछ सुलग रहा था और उनके भीतर की आग से उनके चेहरे पर एक आभा थी. आडवाणी ने अपनी जीवनी में इस पहली मुलाकात का ज़िक्र किया है.
आडवाणी पर कैसे पड़ा वाजपेयी की संगति का असर?
धीर-गंभीर आडवाणी पर वाजपेयी की संगति का प्रभाव पड़ने लगा था. आडवाणी भाषणों पर शोध में वाजपेयी की सहायता करते रहे. साथ ही जनसंघ की दिल्ली इकाई के साथ काम करते रहे. उन्होंने देखा कि हिंदुओं की पार्टी ने कैसे 1958 के दिल्ली नगर निगम चुनावों के लिए वामपंथियों के साथ गठबंधन किया था. राजनीति को निश्चित सांचों में देखने के आदी आडवाणी अब दूसरों के साथ तालमेल करना सीख रहे थे. उस चुनाव की हार के बाद अटल-आडवाणी राज कपूर और माला सिन्हा की फिल्म ‘फिर सुबह होगी’ देखने गए.
मुख्तलिफ मिजाज के बावजूद बनी अटूट जोड़ी
विनय सीतापति अपनी किताब ‘जुगलबंदी’ में लिखते हैं, 1970 के दशक की शुरुआत तक आडवाणी और वाजपेयी की जोड़ी अटूट बन चुकी थी. वाकपटु वाजपेयी को शांत आडवाणी का साथ अच्छा लगता था. वे दोनों साथ में फिल्में देखते और पानी पूरी का मज़ा लेते. आपसी निजी पसंद के अलावा आडवाणी को तैयार करने में वाजपेयी का राजनीतिक अभिप्राय था. उस समय के एक जनसंघ नेता कहते हैं, वाजपेयी ने आडवाणी को इसलिए चुना, क्योंकि वे अच्छी अंग्रेज़ी बोलते थे, विश्वसनीय थे. आडवाणी ने अपने एक सहयोगी को बताया था कि मैं राजनीतिक तौर पर कई लोगों से जूनियर था और मैं सार्वजनिक सभाओं का वक्ता भी नहीं था. किसी भी जननेता और पार्टी के अध्यक्ष के लिए यह सबसे बुनियादी जरूरत है, लेकिन वाजपेयी जी ने मुझसे कहा कि आप उसे हासिल कर लेंगे.
आपातकाल की वो सुबह जिससे बेखबर थे अटल-आडवाणी
देश में आपातकाल लग चुका है, लेकिन 26 जून 1975 की सुबह जब वाजपेयी और आडवाणी उठे तो उन्हें भावी घटनाक्रम की कोई जानकारी नहीं थी. वे दोनों दल-बदल विरोधी कानून पर बने एक संसदीय आयोग में शामिल होने के लिए बेंगलुरु (तब बंगलौर) में थे. जून का महीना दिल्ली में सबसे गर्म होता है और ऐसे में उनके लिए उद्यानों के शहर में होना राहत की बात थी. सुबह साढ़े सात बजे जनसंघ के स्थानीय कार्यालय से आडवाणी को फोन आया कि दिल्ली में विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया जा रहा है. पुलिस अटलजी और आपको गिरफ़्तार करने आती ही होगी. एक घंटे बाद तक आज़ाद घूम रहे आडवाणी ने रेडियो पर अचानक तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आवाज़ सुनी. उन्होंने आपातकाल को सही ठहराते हुए देश को ‘उनके द्वारा कुछ प्रगतिशील कदम उठाने की शुरुआत किए जाने के बाद से तैयार हो रहे एक गहरे और व्यापक षड्यंत्र से’ बचाने की बात की. तभी वाजपेयी वहां पहुंचे और दोनों पुलिस का इंतज़ार करते हुए नाश्ते के लिए कैंटीन की तरफ बढ़ गए. सुबह 10 बजे उन्हें अरेस्ट कर बैंगलोर की सेंट्रल जेल ले जाया गया, जहां उन्हें बड़े से आयताकार कमरे में रखा गया. जेल ने वाजपेयी और आडवाणी को मौका दिया कि वे अपनी शुरुआती घनिष्ठता को फिर से तरोताज़ा करें, जो एक प्रकार की सहायक साझेदारी के कारण फीकी पड़ने लगी थी.
आडवाणी ने अप्पा घटाटे को तार भेज जेल में मंगाए अटलजी के ऊनी कपड़े
अटल बिहारी वाजपेयी सादा जीवन के आदी नहीं थे. ऐसे में आडवाणी को चिंता हुई कि उनके मित्र जेल के हालात को नहीं झेल पाएंगे. आपातकाल लागू होने के बस एक सप्ताह बाद 1 जुलाई 1975 को आडवाणी ने अप्पा घटाटे को तार भेजकर उन्हें अटलजी के घर से ऊनी कपड़े और अटलजी की मेडिकल रिपोर्ट्स लाने को कहा. जब घटाटे बैंगलोर जेल पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि वाजपेयी ने जेल द्वारा उपलब्ध गर्म कपड़े पहने थे. उन्होंने मज़ाक में कहा कि अब इंदिरा गांधी ही खाना देंगी और इंदिरा ही मुझे कपड़े देंगी.
बीजेपी की स्थापना में ‘जुगलबंदी’ की भूमिका
जुगलबंदी ऐसे संगीत को कहते हैं, जिसमें दो संगीतज्ञ इतने तालमेल से ऐसी प्रस्तुति देते है कि पता नहीं चलता कि कौन मुख्य कलाकार है और कौन संगत दे रहा है. आडवाणी कई दशकों तक वाजपेयी के मातहत रहे थे, लेकिन 1980 तक उनका रिश्ता ज़्यादा बराबरी का हो गया था. पहले आडवाणी को हमेशा वाजपेयी की ज़रूरत पड़ती थी, लेकिन अब वाजपेयी को भी आडवाणी की आवश्यकता थी. यही कारण था कि नई भाजपा का स्वरूप तय करते समय वाजपेयी ने सुनिश्चित किया कि जनता सरकार के असफल प्रयोग से सबक लेने में आडवाणी भी उनके साथ शामिल हों. साथ मिलकर विचार करते हुए दोनों इस नतीजे पर पहुंचे कि जनता सरकार ने नागरिक स्वतंत्रता, समाजवाद और विकेंद्रीकरण की एक बिल्कुल अलग विचारधारा प्रस्तुत की थी. 1980 के चुनावों में मतदाताओं ने जेपी की विचारधारा की विरासत को नहीं, बल्कि उसे अमलीजामा पहनाने वाले नेताओं की आपसी लड़ाई को खारिज किया था. लालकृष्ण आडवाणी ने एक नई पार्टी बनाने की घोषणा की. नई पार्टी के अध्यक्ष वाजपेयी ने 6 अप्रैल को अपने भाषण में घोषणा की कि ‘जनता पार्टी की नीतियों और उसके कार्यक्रमों में कोई खामी नहीं थी. असल में लोगों ने राजनेताओं के व्यवहार के खिलाफ वोट दिया था’. 6 अप्रैल 1980 का दिन ख़त्म होने से पहले ही पार्टी के नाम की घोषणा हो गई. जनसंघ नाम अपनाने की बजाय नई पार्टी ख़ुद को जनता पार्टी का उत्तराधिकारी बताना चाहती थी, इसे नाम दिया गया भारतीय जनता पार्टी यानी भाजपा.
84 के बाद वाजपेयी को बीमारियों ने घेरा
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में लोकसभा चुनाव हुए. इलेक्शन हारने के बाद वाजपेयी को राज्यसभा का सदस्य बनाने में एक साल से ज़्यादा का समय लग गया. दिल्ली में अपनी आवश्यकता नहीं होने के कारण वे अपनी ख़राब हो रही किडनी के इलाज के लिए अक्सर अमेरिका जाने लगे, जहां वे न्यूयॉर्क में अपने एक मित्र डॉक्टर मुकुंद मोदी के घर में रहते थे. वे कौल दंपति की बेटी नम्रता के साथ नहीं रहते थे, जो अमेरिका में डॉक्टर थीं और एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर से उनकी शादी हुई थी. वाजपेयी की जीवनी के लेखक विजय त्रिवेदी कहते हैं कि नमिता के मुकाबले नम्रता से उनका अलग रिश्ता था’. विदेश यात्रा खर्चीली थी, इसलिए प्रधानमंत्री राजीव गांधी यह सुनिश्चित करते थे कि वाजपेयी को अमेरिका जाने वाले सरकारी प्रतिनिधिमंडलों में शामिल किया जाए और वाजपेयी ने भी इसे स्वीकार किया था.
पेशेवर दूरी भी नहीं बिगाड़ पाई संबंध
पेशेवर दूरी के दौर में वाजपेयी और आडवाणी के संबंध बिगड़ जाने चाहिए थे, लेकिन वे लगातार मिलते रहे, सलाह-मशवरा करते रहे. कई मुद्दों पर सहमत और असहमत होते रहे. दोनों के मित्र रह चुके एक व्यक्ति ने बताया कि आडवाणी ने जब पार्टी अध्यक्ष का उल्लेख किया तो वह वाजपेयी को सम्मानित महसूस कराने के लिए अतिरिक्त प्रयास करते थे. एक दौर ऐसा भी था जब भाजपा और आरएसएस का हर नेता वाजपेयी से सम्बन्ध नहीं रखना चाहता था. आडवाणी ही यह सुनिश्चित करने वाले एकमात्र व्यक्ति थे कि वाजपेयी इस राजनीतिक बियाबान में गुम होकर अप्रासंगिक न हो जाएं.
बीजेपी को फर्श से अर्श तक पहुंचाने में सफल हुई जोड़ी
भारतीय जनता पार्टी को मजबूत करने में अटल बिहारी वाजेपयी और लालकृष्ण आडवाणी की अहम भूमिका रही है. 1980 में बीजेपी के गठन के बाद पार्टी ने पहला आम चुनाव 1984 में लड़ा, तब बीजेपी को केवल 2 सीटों पर ही कामयाबी मिली थी. 1989 में बीजेपी 89 सीट पर पहुंच चुकी थी. 1996 के चुनाव में बीजेपी लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. तब भारत के राष्ट्रपति ने बीजेपी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया. हालांकि बीजेपी सरकार कुछ दिनों में ही गिर गई. 1998 में बीजेपी ने फिर अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर केंद्र में सरकार बनाई. अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने. बीजेपी ने 1999 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन बनाकर लोकसभा चुनाव लड़ा. इस गठबंधन में 20 से अधिक दल शामिल हुए. इसमें बीजेपी को 182 सीटें हासिल हुई थीं. एक बार फिर से अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने.
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