राजस्थान में विधानसभा चुनाव 2023 से पहले जाट राजनीति में जोधपुर ( Jodhpur ) के मदेरणा परिवार की विरासत संभाल रही दिव्या मदेरणा ( Divya Maderan ) और नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल ( Hanuman beniwal ) के बीच संघर्ष में कौन जीतेगा

Divya Maderna Vs Hanuman Beniwal in jat politics : राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस के साथ साथ राष्ट्रीया लोकतांत्रिक पार्टी के हनुमान बेनीवाल और भारतीय ट्राइबल पार्टी जैसे प्लेयर विधानसभा चुनाव 2023 की तैयारियों में जुट गए है. राजस्थान में वोटबैंक के गणित के हिसाब से जाट जाति सबसे बड़ा वोटबैंक है. ऐसे में जाट समाज का नेता बनने की पिछले 70 सालों से चल रही लड़ाई अब नये मोड़ पर है.

आजादी के बाद पहली बार चुनाव हुए. तो राजस्थान के पहले वित्त मंत्री नाथूराम मिर्धा बने. मिर्धा परिवार ने न सिर्फ नागौर बल्कि सूबे की जाट राजनीति पर लंबे समय तक दबदबा बनाए रखा. लेकिन 21वीं में मिर्धा परिवार की राजनीति की चमक धीरे धीरे फीकी पड़ गई. इसके अलावा खांटी राजनीति के आसरे जोधपुर के लक्ष्मणगढ़ चाडी के परसराम मदेरणा भी ऐसी शख्सियत थी. जिसने करीब 7 दशकों तक सूबे सियासत में अपने कायदे स्थापित किए. लेकिन 1998 में मुख्यमंत्री की कुर्सी परसराम मदेरणा के हाथों में आती आती निकल गई. तो उसके साथ ही धीरे धीरे हाथों से निकलने लगी जाट राजनीति की कमान. भंवरीदेवी प्रकरण ने इस परिवार की सियासी ताकत को और झटका दिया

मारवाड़ के इन दो परिवारों के अलावा शेखावाटी का ओला परिवार भी जाट राजनीति में अपनी अहमियत रखता था. लेकिन 2008 में शीशराम ओला की मुख्यमंत्री बनने की संभावनाएं खत्म हुई. तो धीरे धीरे उनकी सियासी ताकत भी खत्म होती गई. मिर्धा, मदेरणा और ओला परिवार के बाद अब जाट राजनीति में नए प्रतीक का उदय हो रहा है. और वो है बेनीवाल परिवार.

जयपुर की गलियों में छात्र राजनीति से करियर शुरु करने वाले हनुमान बेनीवाल. जिनके पिता कभी बीजेपी के साथ रहे थे. स्थानीय जातीय वर्चस्व की लड़ाई में जाट युवाओं का पक्ष लेकर और वसुंधरा राजे से हुई अदावत के बाद निर्दलीय राजनीति शुरु करने वाले हनुमान बेनीवाल अब खुद को जाट राजनीति के नए चेहरे के तौर पर स्थापित करने में जुटे है.

मदेरणा परिवार से बेनीवाल का संघर्ष

बेनीवाल मौजूदा वक्त में जाट राजनीति के लिए जिस जमीन को उपजाऊ मानते है. वो बाड़मेर, जोधपुर, नागौर के साथ साथ शेखावाटी के कुछ इलाके है. लेकिन सबसे ज्यादा नजर नागौर, जोधपुर और बाड़मेर पर है. यहां बेनीवाल का मुकाबला मदेरणा परिवार से है. जिसकी कमान फिलहाल दिव्या मदेरणा के हाथों में है. 

कमजोर क्यों पड़ रही है दिव्या मदेरणा

आजादी के बाद से जाट राजनीति में जिन चेहरों ने खुद को स्थापित किया. उन्हौने खांटी राजनीति की. देसी अंदाज में भाषण देने से लेकर आण लोगों के साथ संपर्क स्थापित करने की उनकी अलग कला होती थी. बेनीवाल उसी स्टाइल में राजनीति कर रहे है. जाट समाज से जुड़े हर मामले में बेनीवाल आगे आकर अपना पक्ष रखते है. लेकिन इसके उलट दिव्या मदेरणा विधायक बनने के बाद जाट समाज से जुड़े मुद्दों पर या धरना प्रदर्शन से दूर रही. वो केवल विधानसभा में ही आक्रामक नजर आई. सड़क पर संघर्ष करते नहीं दिखाई दी.

जब मदेरणा के घर में संघर्ष करते दिखे बेनीवाल

जोधपुर मदेरणा परिवार का गढ़ कहा जाता था. लेकिन पिछले तीन सालों में जोधपुर में तमाम मुद्दों पर हनुमान बेनीवाल सड़क पर संघर्ष करते दिखे. हाल ही में सीआरपीएफ जवान नरेश जाट की आत्महत्या मामले में चल रहे धरने में दिव्या मदेरणा नहीं पहुंची लेकिन हनुमान बेनीवाल और उनके समर्थक धरना स्थल पर डटे रहे. आखिरकार परिवार की ज्यादातर मांगों पर सहमति बन गई. उससे पहले अग्निपथ योजना के विरोध में जब कांग्रेस केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही थी. उस वक्त इसी जाट बेल्ट से हजारों लोगों को जोधपुर में इकट्ठा कर बेनीवाल ने न सिर्फ योजना का विरोध किया बल्कि अपनी सियासी ताकत का संदेश भी दिया.

जाट के अलावा एससी एसटी कांग्रेस का मूल वोटर माना जाता है. लेकिन जोधपुर में हुए लवली कंडारा एनकाउंटर के बाद पुलिस पर फेक एनकाउंटर के आरोप लगे. तो इसके खिलाफ चल रहे धरने में हनुमान बेनीवाल ने कमान संभाली. लेकिन दिव्या मदेरणा वहां भी नजर नहीं आई. 

जोधपुर जिला तो छोड़िए. पिछले पंचायती राज चुनावों में भी ओसियां विधानसभा क्षेत्र में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने अच्छे खासे वोट बटोरे. और पार्टी के जनप्रतिनिधि जिताने में भी कामयाब रही.

न सिर्फ जोधपुर बल्कि बेनीवाल अपने गृह जिले नागौर में भी उतने ही सक्रिय है. जयपाल पूनिया मर्डर केस हो या मेघाराम आत्महत्या प्रकरण. सुनील ताडा हत्याकांड से लेकर नागौर में दलित युवकी से दुष्कर्म और हत्या का मामला हो. हर मौके पर बेनीवाल ने वक्त रहते मोर्चा संभाल लिया. जिससे न सिर्फ जनसमर्थन जुटाने में उनको मदद मिली. बल्कि विरोधियों की ताकत को भी धीरे धीरे खत्म करते गए.

जाहिर सी बात है. मारवाड़ में विधानसभा चुनाव 2023 से पहले जाट राजनीति का सियासी संग्राम मदेरणा परिवार और बेनीवाल परिवार के बीच रहना तय है. ऐसे में अगर दिव्या मदेरणा सड़क पर संघर्ष करते नहीं दिखी. और उनके इलाके में जनता के मुद्दों पर बेनीवाल लड़ाई लड़ेंगे. या जनता भी हनुमान बेनीवाल से ही मदद मांगने पहुंच रही है. तो दिव्या मदेरणा के लिए अपनी सियासी विरासत को संभाल रखना काफी मुश्किल होगा. जिसका फायदा यकीनन हनुमान बेनीवाल ही उठाएंगे

Author Profile

Desk
Desk

By Desk

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *